शनिवार, 27 फ़रवरी 2016

                                                          समय
प्रतिछा है समय की
जो कुनकुने पानी की तरह
सहला देगा खुरदुरी हथेलिया
बेमोल बांट देगा
अनमोल मुस्कुराहटें
माथे पर जमी हुईं
विवस्तओ की सिलवटे
उतर आएंगी पलकों तक
नई दृस्टि का नव लोक तकने तक
प्रतिछा है बस समय की
जब घुटनो के बल
रेंगता हुआ आदमी
आसमानी सितारे कांख  दबोचे
      चल पड़ेगा
रौशनी के अंतहीन सफर पर
सड़को पर ऊंघती नाघ की धुप
चैत की प्यास की तरह लगेगी हुलसने
               "मधु राज "उर्फ़ राजा पंडित 

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