बुधवार, 17 अगस्त 2016

मित्रो आइये जानते है मंगल का कर्क राशि में प्रभाव󾮞󾮞󾮞
कर्क राशि में स्थित होने पर मंगल बलहीन हो जाते हैं तथा इसके अतिरिक्त मंगल कुंडली में अपनी स्थिति विशेष के कारण अथवा किसी बुरे ग्रह के प्रभाव के कारण भी कमजोर हो सकते हैं। कुंडली में मंगल की बलहीनता कुंडली धारक की शारीरिक तथा मानसिक उर्जा पर विपरीत प्रभाव डाल सकती है तथा इसके अतिरिक्त जातक रक्त-विकार संबधित बिमारियों, तव्चा के रोगों, चोटों तथा अन्य ऐसे बिमारीयों से पीडित हो सकता है जिसके कारण जातक के शरीर की चीर-फाड़ हो सकती है तथा अत्याधिक मात्रा में रक्त भी बह सकता है। मंगल पर किन्हीं विशेष ग्रहों के बुरे प्रभाव के कारण जातक किसी दुर्घटना अथवा लड़ाई में अपने शरीर का कोई अंग भी गंवा सकता है। इसके अतिरिक्त कुंडली में मंगल की बलहीनता जातक को सिरदर्द, थकान, चिड़चिड़ापन, तथा निर्णय लेने में अक्षमता जैसी समस्याओं से भी पीडि़त कर सके
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बुधवार, 2 मार्च 2016

  काल के टिप्स
गुरु ग्रह की शान्ति हेतु उपाय
गुरु ग्रह की शान्ति हेतु उपाय- यदि जन्म कुण्डली में गुरु ग्रह अशुभ फल दे रहा हो तो निम्नांकित मंत्रों के जप करने से इसकी अशुभता में कमी आ जाती है।
वैदिक मंत्र- ॐ बृहस्पते अति यदर्यो अर्हाद् द्युमद्विभाति क्रतुमज्जनेषु। यद्दीदयच्दवस ऋतप्रजात तदस्मासु द्रविणं धेहि चित्रम्।
पुराणोक्त मंत्र- ॐ देवानां च ऋषीणां च गुरु कांचन संन्निभम्। बुद्धिभूतं त्रिलोकेशं तं नमामि बृहस्पतिम्।।
तंत्रोक्त मंत्र- ॐ ग्रां ग्रीं ग्रौं सः गुरवे नमः ।
जप संख्या- 19000। वर्तमान कलयुग में चार गुना (19000 *4 = )76000 
गुरु गायत्री मंत्र- ॐ अंगिरो जाताय विद्महे वाचस्पतये धीमहि तन्नो गुरु प्रचोदयात्।।
रत्न- गुरु के शुभत्व में वृद्धि हेतु सोने या चांदी में सवा पांच रत्ती का पुखराज शुभ मुहूर्त में धारण करना चाहिए।
यंत्र- गुरु यंत्र को सोने या चांदी के पत्र पर लिखवाकर या भोजपत्र पर अष्टगंध से लिखकर पूजा प्रतिष्ठा करवाकर गले या दाहिनी भुजा में धारण करना चाहिए।
दान सामग्री- पीले वस्त्र, पुखराज, पीले चावल, चने की दाल, हल्दी, शहद,पीले फल, घी धर्म ग्रन्थ, सुवर्ण पीली मिठाई दक्षिणा आदि।
अन्य उपाय- गुरु की प्रसन्नता हेतु बृहस्पति वार का व्रत धारण करना चाहिए। पीले पुष्पों से पूजन करना चाहिए, केशर का तिलक लगाना चाहिए, श्री विष्णु सहस्त्र नाम का पाठ करना, गौ सेवा करना, पीले वस्त्रों का प्रयोग करना, व दानादि से इनकी अशुभता को कम किया जा सकता है।

शनिवार, 27 फ़रवरी 2016

                                                          समय
प्रतिछा है समय की
जो कुनकुने पानी की तरह
सहला देगा खुरदुरी हथेलिया
बेमोल बांट देगा
अनमोल मुस्कुराहटें
माथे पर जमी हुईं
विवस्तओ की सिलवटे
उतर आएंगी पलकों तक
नई दृस्टि का नव लोक तकने तक
प्रतिछा है बस समय की
जब घुटनो के बल
रेंगता हुआ आदमी
आसमानी सितारे कांख  दबोचे
      चल पड़ेगा
रौशनी के अंतहीन सफर पर
सड़को पर ऊंघती नाघ की धुप
चैत की प्यास की तरह लगेगी हुलसने
               "मधु राज "उर्फ़ राजा पंडित 

शुक्रवार, 26 फ़रवरी 2016


           अदभुत फल  देती है   मंगल और शनि की युति 
                                                          कर्मो के आधार पर देते है जातक को दण्ड
 शनि और मंगल दोनों की गिनती पाप ग्रहों में होती है। कुंडली में इनकी अशुभ स्थिति भाव फल का नाश कर व्यक्ति को परेशानियों में डाल सकती है, लेकिन कभी कभी ये योग जातक को बुलंदी पर ले जाती है 
शनि-मंगल युति-प्रतियुति जीवन में आकस्मिकता का समावेश कर देती है। वैवाहिक जीवन, नौकरी, व्यवसाय, संतान, गृह सौख्य इनसे संबंधित शुभ-अशुभ घटनाएँ जीवन में अचानक घटती हैं। अचानक विवाह जुड़ना, अचानक प्रमोशन, बिना कारण घर बदलना, नौकरी छूटना, कार्यस्थल या शहर-देश से पलायन आदि शनि-मंगल युति के आकस्मिक परिणाम होते हैं।यहाँ  तक की राज नीति अस्थिरता भी ये ग्रह ही देते है 
                    प्रस्तुति ज्योतिष भुसन राजा पण्डित
                                       3G ASTRO SOCIAL SERVICE DIGITAL INDIA FOUNDATION
                                                                        07033034433
आप जाने अपने संवत के बारे में 

नये संवत की शुरुआत

प्राचीन काल में नया संवत चलाने से पहले विजयी राजा को अपने राज्य में रहने वाले सभी लोगों को ऋण-मुक्त करना आवश्यक होता था। राजा विक्रमादित्य ने भी इसी परम्परा का पालन करते हुए अपने राज्य में रहने वाले सभी नागरिकों का राज्यकोष से कर्ज़ चुकाया और उसके बाद चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से मालवगण के नाम से नया संवत चलाया। भारतीय कालगणना के अनुसार वसंत ऋतु और चैत्र शुक्ल प्रतिपदा की तिथि अति प्राचीन काल से सृष्टि प्रक्रिया की भी पुण्य तिथि रही है। वसंत ऋतु में आने वाले वासंतिक 'नवरात्र' का प्रारम्भ भी सदा इसी पुण्य तिथि से होता है। विक्रमादित्य ने भारत की इन तमाम कालगणनापरक सांस्कृतिक परम्पराओं को ध्यान में रखते हुए ही चैत्र शुक्ल प्रतिपदा की तिथि से ही अपने नवसंवत्सर संवत को चलाने की परम्परा शुरू की थी और तभी से समूचा भारतइस पुण्य तिथि का प्रतिवर्ष अभिवंदन करता है।दरअसल, भारतीय परम्परा में चक्रवर्ती राजा विक्रमादित्य शौर्य, पराक्रम तथा प्रजाहितैषी कार्यों के लिए प्रसिद्ध माने जाते हैं। उन्होंने 95 शक राजाओं को पराजित करके भारत को विदेशी राजाओं की दासता से मुक्त किया था। राजा विक्रमादित्य के पास एक ऐसी शक्तिशाली विशाल सेना थी, जिससे विदेशी आक्रमणकारी सदा भयभीत रहते थे। ज्ञान-विज्ञान, साहित्य, कला संस्कृति को विक्रमादित्य ने विशेष प्रोत्साहन दिया था। धंवंतरि जैसे महान वैद्य, वराहमिहिर जैसे महान ज्योतिषी और कालिदास जैसे महान साहित्यकार विक्रमादित्य की राज्यसभा के नवरत्नों में शोभा पाते थे। प्रजावत्सल नीतियों के फलस्वरूप ही विक्रमादित्य ने अपने राज्यकोष से धन देकर दीन दु:खियों को साहूकारों के कर्ज़ से मुक्त किया था। एक चक्रवर्ती सम्राट होने के बाद भी विक्रमादित्य राजसी ऐश्वर्य भोग को त्यागकर भूमि पर शयन करते थे। वे अपने सुख के लिए राज्यकोष से धन नहीं लेते थे।
                                   प्रस्तुति ज्योतिष भुसन राजा पण्डित
                3G ASTRO SOCIAL SERVICE DIGITAL INDIA FOUNDATION
                                              07033034433


शुक्रवार, 5 फ़रवरी 2016

                                                      बालकोनी का वास्तु
                                                                      ज्योतिष भुसण  राजा पण्डित (A .I .F . S NEW  DEL H I )
 आपको  प्रणाम मित्रो 
आज आपको बता रहा हु बालकोनी  का वास्तु के बारे में जैसा आप जानते है की हर जीव को साँस की जरूरत होती और ठीक उसी  प्रकार  आपके घर को भी साँस की जरुरत होती है जो  नामक साँस नाली  क्युकी  ये  जरुरी है यदि आपका भवन पूर्वमुखी है, तो बालकनी पूर्व या उत्तर दिशा में होना चाहिए। ऐसे भवन में बालकनी पश्चिम या दक्षिण दिशा में कदापि न बनायें।पश्चिममुखी भवन में बालकनी को उत्तर या पश्चिम की दिशा में बनाना शुभ माना जाता है।जिन लोगों का मकान उत्तरमुखी है, उसमें बालकनी को पूर्व या उत्तर दिशा में बनाना हितकर रहता है। यदि आपका भूखण्ड दक्षिणमुखी है तो, बालकनी को पूर्व या दक्षिण दिशा में बनाना लाभप्रद साबित होता है। बालकनी का चयन हमेशा भवन के मुख के आधार पर ही करना उचित रहता है। परन्तु या ध्यान रखना चाहिए कि प्रातःकालीन की सकारात्मक उर्जा एंव प्रकाश का प्रवेश घर में निर्बाध रूप से होता रहें। वास्‍तु की इन टिप्‍स का पालन कर आप अपने घर में खुशियां ही खुशियां ला सकते हैं। इससे न केवल आपके घर में शांति बनी रहेगी बल्कि धनलक्ष्‍मी का भी वास होगा। ये टिप्‍स सिर्फ मकान ही नहीं बकि फ्लैट पर भी लागू होती हैं।​  जो की बहुत जरुरी है 

सोमवार, 1 फ़रवरी 2016

                                            धर्म बना   आज की  राजनीति का पखवाड़ा 
धर्म और राजनीति का समन्वय आज से ही नहीं पुरातन काल से सकारात्मक  रहा है कोई भी कैसा अगर राजा को निर्णय लेना होता था तो वो कुलगुरु से सलाह मांगते थे और आचर्य चाणक्य या गुरुद्रोण  इसके स्पस्ट उदाहरण है जो भी जैसा भी मेरा एक ही कथन है सकारत्मक राजनीती बिना धर्म के सम्भव नहीं है क्यों की धर्म के जो गुण है वो स्पस्ट तरीके से एक  राजीनीति रूपी सीसे में झलकता है खुद आप देख लेवे की  धर्म के मुख्य आधारभूत सिद्धान्त सत्य, सेवा, सहयोग, सुमिरन, समर्पण है ये और एक  राष्ट्र  के जो नियम है वो भी लगभग ऐसा है है राजनीती सिद्धांन्त भी   कुछ ऐसा ही है चाहे वो समानता का या सहयोग की भवना का हो दूसरे सब्दो में राजनीती का मुख्य उद्देश है की किसी भी देश के कन्नून विधि के अनुरूप ही कोई कार्य हो और कार्य भी देश हीत और नागरिक हित को देखकर इसलिए राष्ट्र सभी धर्मो से उच्च राष्ट्र धर्म माना  गया है  और किसी भी धर्म को संचालित करने की विधि एक  सकारत्मक जीव के अंदर होना चाहिए और वो राजनीती नामक विधि से ही सम्भव है राष्ट्र धर्म की रच्छा कर सकती ही भगवान ने   गीता में खुद कहा है  ऽनहंवादी धृत्युत्साहसमन्वित:। सिद्ध्यसिद्ध्योर्निर्विकर:कर्ता सात्विक उच्यते।। (गीता 18/26)- लालच व अंहकार से मुक्त, धैर्य व उत्साह से युक्त रहकर परिणाम की परवाह किये बिना, फलासक्ति से रहित रहकर योगधर्म व राष्ट्रधर्म को निष्ठापूर्वक निभाना। ये हर नागरिक का पूर्ण कर्तब्य है तो मतलब  है की बिना धर्म के नीति और मार्ग के बिना राजनीती  राजनीती नहीं कूटनीति का रुप ले लेती है (धर्म  और राजनीती -ससक्त राष्ट्र )
लेकिन आज के इस पाखंड के बाजार में न कोई राष्ट्र धर्म का महत्त्व रहा गया न कोई विधि राजनीती की जिसे कोई भी   राष्ट्र का भला हो सके हमरे देश में ऋषि मुनियो का या   धर्मगुरु का सिर्फ    आशीर्वाद या मार्गदर्सन म ही रहा करता था चाहे हो गुरु वासिस्ष्ट ,या आचर्य चाणक्य या  देवराहबाबा  जी सभी ने केवल इक मार्गदर्सन दिया खुद राजा सासंद जैसे पदो के लालच में नहो पड़े लेकिन आज कुछ ताथाकथित कलयुगी संतो  लिबास पहन कर और खुद को भगवान का एजेंट बता कर राजनीती में अपना हाथ साफ करते है मतलब आस्था के साथ पूर्ण खिलवाड़ मै  मानता हु की एक  अच्छे राष्ट्र के लिए धर्म जरुरी है पर धार्मिक पखवाडा  उचित नहीं है ये देश राम का भी और रहीम का भी   है  तुलसीदास  का भी है तो कबीर दस का भी है धर्म जो भी हो वो राष्ट्र का विकाश  ही चाहता है लेकिन कुछ कलयुगी बाबा लोगो के आस्था के साथ खिलवाड़ कर धर्मं     का  मायने पर ही सवालिया निसान लगा दिया मेरा सिर्फ एक  ही तर्क है की लोगो को उपदेश जो देते है बाब लोग वो खुद पर लागु क्यों नहीं करते है ,अभी भी राष्ट्र को के लोग को सोचना चाहिए की लोभ मोह ये  गुण बड़े बड़े बाबा  को फास लिया है तो फिर राष्ट्र का विकास कैसे ,अपनी सोच को आप सब सकरतमक करे और इक अचे राजनीतीक नागरिक की तरह आज के युग में अचे लोग का चुनाव करे बाबा लोग या अन्य कोई धार्मिक गुरु का समर्थन बिलकुल मत करे क्यों की एक सच्चे देशभक्त के लिए सबसे बड़ा उसका राष्ट्र धर्म ही होता है   आज  के  समय में अकोई भी धर्म गुरु पहले अपना लाभ भी सोचत  है इसलिए  धर्म को आज नीति से दूर ही रखा जाये तो आज के लिए बेतहर कल  बनेगा 
                                                   राष्ट्र धर्म परमो उच्च  धर्म || इदं राष्ट्राय इदन्न मम ||
                                                 राजा पंडित (ये मेरे अपने विचार )
                                  
 
  






रविवार, 31 जनवरी 2016

 प्रेम में हम किसी को हृदय से लगा लेते हैं। दो देह पास आ जाती हैं, लेकिन दूरी बरकरार रहती है, दूरी मौजूद रह जाती है। इसलिए हृदय से लगाकर भी किसी को पता चलता है कि हम अलग-अलग हैं, पास नहीं हो पाये हैं, एक नहीं हो पाये हैं। शरीर को निकट लेने पर भी, वह जो एक होने की कामना थी, अतृप्त रह जाती है। इसलिए शरीर के तल पर किये गये सारे प्रेम असफल हो जाते हों, तो आश्चर्य नहीं। प्रेमी पाता है कि असफल हो गये। जिसके साथ एक होना चाहा था, वह पास तो आ गया; लेकिन एक नहीं हो पाये। लेकिन उसे यह नहीं दिखायी पड़ता कि यह शरीर की सीमा है कि शरीर के तल पर एक नहीं हुआ जा सकता, पदार्थ के तल पर एक नहीं हुआ जा सकता, मैटर के तल पर एक नहीं हुआ जा सकता। यह स्वभाव है पदार्थ का कि वहां पार्थक्य होगा, दूरी होगी, फासला होगा। 
आप सभी को ,मेरा  प्रणाम  मै  राजा पंडित लेकर  कुछ नया हाज़िर हु 
आज कुछ राजनीति बात आपसे शेयर कर रहा ह 
मोदी जी के कार्यकाल विकाश की दृस्टि से देखा जाये  बेहतर है ,राजनीती दृतिकोण से निर्णय उचित नहीं 
                                                                                       राजा पंडित